India marches towards a full depression as job losses continue

Ajay Rohilla

अलग – अलग समाचार माध्यमों के अनुसार अप्रैल से अब तक लगभग 1 करोड़ 80 लाख से भी अधिक लोगों की नौकरियां जा चुकी है । 50 लाख लोगों को तो अपनी नौकरियों से, केवल जुलाई माह में ही हाथ धोना पड़ा है। सरकार ने केंद्रीय रोजगार परीक्षा की घोषणा कर दी।
और क्या चाहिए ? अब ये ना पूछियेगा कि कितनी नोकरियाँ है पब्लिक सेक्टर में ? और कितनी सीटें खाली पड़ी है ?

सारे सरकारी प्रतिष्ठान एक एक कर के बिक रहे हैं। एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, एयर इंडिया, ट्रेनें आदि।
जो भी सरकार के नियंत्रण में था / है
सब बिकेगा

कारण दो बताए जाते हैं

1- कर्मचारी कामचोर होते है
2- संस्था घाटे में चल रही है

सवाल ये कोई नहीं पूछता की अगर कर्मचारी कामचोर है तब जब कोई प्राइवेट संस्थान किसी पब्लिक संस्थान को खरीदेगी तब क्या उसके कर्मचारी वो मंगल ग्रह से लाएगी ?
अगर नहीं ,तो क्या भारतीय तब भी कर्मचारी होंगें ?
अगर हाँ ,क्या तब वो कामचोर नहीं होंगें ?
अगर नहीं तो इसका अर्थ ये है कि प्राइवेट संस्थानों का मैनेजमेंट पब्लिक सेक्टर के मैनेजमेंट से बेहतर है ।
तब सवाल ये है पब्लिक सेक्टर मैनजमेंट अपनी ज़िम्मेदारी से दूसरों पर क्यों डाल रहा है ?
जोकि सीधे – सीधे सरकार के नियंत्रण में होता है
दूसरा कारण जो बताया जाता है वो है – घाटा
अब सवाल ये है कि अगर कोई पब्लिक संस्थान घाटे में चल रहा है तब को प्राइवेट संस्थान उसे क्यों खरीदना चाहेगा ?
क्या खरीद कर वो घाटे में ही रहना चाहता है या उससे मुनाफा कमायेगा ?
यदि हां तो कैसे ?
और वो किसी पब्लिक सेक्टर संस्थान को खरीद कर मुनाफा कमा सकता है तो पब्लिक सेक्टर खुद क्यों नहीं ?

और कमाल ये है कि प्राइवेट संस्थानों के पास पब्लिक सेक्टर के संस्थानों के पैसे भी पब्लिक संस्थानों के बैंकों से ही आते है,लोन की शक्ल में ।
और लोन वापसी का क्या हाल है ?
वो सबको पता है ।
ले लिया तो ले लिया ,वापस क्या करना
पब्लिक सेक्टर बैंक में पैसा माने जनता का पैसा
डूब गया ,बैंक भी डूब गया तो क्या हुआ ?

बैंकों ने ₹ 17000 हजार करोड़ का एनपीए तो अभी हाल ही में किया है ( हालांकि ये लाखों करोड़ का हो चुका होगा अब तक ) । सरकार के पास, केवल लोन देने की तरकीब है, पर उस लोन की वसूली कैसे हो ? शायद इसकी न उसके पास कोई योजना है, न इरादा और न ही इच्छाशक्ति।

जब सवाल ही नहीं होंगें तो धीरे – धीरे सब निजी हाथों में चला जायेगा फिर हर सुविधा की कीमत भी वो ही तय करेंगे ।

जैसे 5 रुपये की प्लेटफार्म टिकेट 50 रुपये की ,या फिर स्कूलों – डॉक्टरों की फीस ,यातायात की कीमत इत्यादि ,
मतलब हर सुविधा की कीमत चाहे वो पानी बिजली हो या बीमारी में आपकी सांस ।
जब सब उनके हाथ में होगा तब वो ही तय करेंगे आप और मैं कुछ ना करेंगे ।
हम तो अब ही सवाल नहीं कर रहे तब क्या करेंगे ।
अगर किसी ने कभी भले – भटके कभी कर भी लिया तो
वो सिर्फ उस जानकारी के लिए नम्बर एक और उसके लिए नम्बर दो दबाइये ही सुनता रहेगा और कभी किसी मशीनी आवाज़ से बात अगर हो भी गई तो वो आवाज़ कह देगी ये हमारी कम्पनी की पॉलिसी है ।

अब बेचारे पूंजीपतियों की मुसीबत है आखिर उन्हें भी तो दुनिया का सबसे अमीर आदमी बन देश को विश्वगुरु बनाना है ।
तो उनके नाम फोर्ब्स की रैंकिंग इत्यादि में हों इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ।
नेताओ ,अधिकारियों इत्यादि को मैनेज करना भी तो मेहनत ही हुई ना ।

अगर इसी गति से सब संस्थानों का निजीकरण होता रहा तो वो समय दूर नहीं जब आने वाली पीढियां अलाने- फलाने के अस्पताल में पैदा होंगी ,उसी के स्कूल कॉलेज में पढ़ेंगी ,उसी के संस्थानों में नोकरी करेंगी ,उसी अस्पताल में इलाज करवाएंगी और उसी के बनवाये शमशानों में अंतिम संस्कार करवाएंगी ।

जीना उनके लिए मरना उनके लिए

आइए मिलकर शपथ लें कुछ भी हो जाये ,हम सवाल नहीं करेंगें
पैदा करना और मारना तो ऊपर वाले के हाथ है
होई सोई जो राम रची राखा

Ajay Rohilla

Actor, Concerned Citizen

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